जब भी आप किसी पंडित को अपनी कुंडली दिखाते हैं तो पंडित आपकी लग्न कुंडली देखा है और जब आपकी शादी की बात आती है तो पंडित आपकी लग्न कुंडली के साथ नवमांश कुंडली भी देखा है जब कुंडली पंडित देखा है वह दो तरीके से ग्रहों की स्थिति को देखकर आपको फल बताता है पहले है फलित और दूसरा है गणित।
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फलित का मतलब होता है कि कौन सा ग्रह किस स्थान पर बैठा है और किस राशि में बैठा है और उसके साथ किसी अन्य ग्रहों की युक्ति तो उसका फल क्या होगा वह फलित के अंदर आता है यानी कौन सा ग्रह पर बैठा है उसका क्या फल होगा या फलित के अंदर आएगा
बहुत जब पंडित गणित का निर्धारण करके आपको बताता है तो वह यह बताता है कि किस ग्रह की महादशा चल रही है और किस दिशा की अंतर्दशा आने वाली है अब महादशा और अंतर्दशा के बारे में बता देते हैं महादशा का मतलब होता है लंबे समय के लिए आने वाली दशा ।
और अंतर्दशा का मतलब होता है जो कम समय के लिए आपको दशा आने वाली है अब एक होता है युक्ति जब कोई दूसरा ग्रह किसी दूसरे ग्रहों के साथ बैठ जाए तो इस युक्ति रहती है और इस युक्ति से कोई दोष भी उत्पन्न हो सकता है। और कोई राजयोग भी हो सकता है
एक बात आप ध्यान रहे कि किसी की कुंडली में जहां पर चंद्रमा बैठेगा वह उसकी राशि होगी यानी किसी का नंबर में बैठा है तो उसकी कर्क राशि होगी यदि 6 नंबर में बैठा है तो उसकी कन्या राशि होगी ।
और अगर लग्न की बात करे तो आपकी कुंडली का पहला घर आपका लग्न होगा लगन से आपके शरीर को देखा जाता है आपकी कुंडली में पहले घर एक नंबर है तो आपका मेष लग्न होगा यह राशि के क्रम अनुसार चलते हैं एक बात याद रहे । की हर ग्रहों की कुछ दृष्टियां होती है आपको कुछ ग्रहों की दृष्टि बता रहा हूं जैसे कि सूर्य जहां पर बैठा है वहां के फल तो देता ही है और वहां से साथी दृष्टि भी देखा है लेकिन शनि की दो दृष्टियां होती है और बाकी ग्रहों की सातवीं दृष्टि होती है और कुछ ऐसे ग्रह भी है जिनकी दो-तीन दृष्टियां होती है और एक चीज आती है डिग्री की कौन ग्रह कितनी डिग्री का है और उसका फल क्या रहेगा
यदि ग्रह बाल अवस्था में है तो 25% फल आपको देता है यदि युवावस्था में तो 100% देगा और यदि बुढ़ापे में है तो 25% ही आपको फल मिलते हैं
एक चीज और आती है मित्र राशियां और शत्रु राशि या आप कह सकते हैं मित्र ग्रह शत्रु ग्रह देखिए उदाहरण के लिए सूर्य और शनि की कभी नहीं बनती है इसलिए सूर्य और शनि की युक्ति किसी घर में हो जाए तो वहां गलत ही फल मिलेंगे मंगल और सूर्य मित्र है वही चंद्रमा सौम्य ग्रह है है और शुक्र भी सौम्या है यानी ज्यादा इनका प्रभाव कुछ नहीं रहता हैं ।
अब एक चीज और आती है नक्षत्र । नक्षत्र 28 प्रकार के होते थे लेकिन आप 27 प्रकार के ही होते हैं 28 नक्षत्र अभिजित नक्षत्र होता था जब कौरव और पांडव के बीच युद्ध हुआ तो उस समय जब भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया । मोर कौरव युद्ध शुरू करने वाले थे तो उसमें अभिजित नक्षत्र आने वाला था यह अभिजित नक्षत्र सबसे शुभ माना जाता है और इसे 28 में नक्षत्र की श्रेणी में रखा गया था लेकिन भगवान श्री कृष्ण जी ने अभिजित नक्षत्र को नक्षत्र की श्रेणी से निकाल दिया राजा दक्ष की 27 पुत्रियां कि उन्होंने अपनी पुत्री की शादी चंद्रमा से कराई लेकिन चंद्रमा पत्नी को अच्छा मानता था और यही से राजा दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया कि तुम्हारा सौंदर्य काम हो जाएगा उसके बाद चंद्रमा ने भगवान शिव की पूजा सोमनाथ में करी |
सोमनाथ में पूजा करने के बाद भगवान शिव खुश हुए उन्होंने कहा कि अब से तुम्हारा कृष्ण पक्ष मत तुम्हारा आकर बढ़ेगा और शुक्ल पक्ष आकर बढ़ेगा और शुक्ल पक्ष में तुम्हारा आकर घटेगा चलिए आज किस आर्टिकल में हम आपको नवमांश के बारे में जानकारी देंगे की नवमांश होता क्या है। इसलिए आप हमारी इस आर्टिकल को पूरा जरूर पड़े और अधिक से अधिक लोगों को शेयर करें
नवमांश कुंडली क्या होती है (navamansh kundali kya hai )
लग्न कुंडली के बारे में हर किसी को जानकारी होती है लग्न कुंडली के बाद यदि किसी कुंडली को देखा जाता है तो वह नवमांश कुंडली को देखा जाता है लग्न कुंडली के नव हिस्से को दर्शाने वाली और उसका निर्धारण जिस कुंडली से किया जाता है वह नवमांश कुंडली होती है आप यह भी कह सकते हैं की शरीर लग्न कुंडली और उसकी आत्मा नवमांश कुंडली होती है
ऐसा भी कहा जाता है कि यदि कोई ग्रह लग्न कुंडली में नीचे का और नवमांश कुंडली में उच्च का बैठक तो अच्छे फल देता है
जब किसी की शादी की बात होती है या शादी में कुंडली का मिलान किया जाता है तो नवमांश कुंडली को भी देखा जाता है
नवमांश कुंडली के जरिए शादी के बाद आपका जीवन कैसे चलेगा शादी में कोई रुकावट तो नहीं आएगी क्या शादी के बाद तो कोई रुकावट नहीं आएगी इन सब का पता किया जाता है नवमांश कुंडली से ।
यदि लग्न कुंडली में शुक्र गुरु अच्छे भाव में नहीं बैठे हैं और नवमांश कुंडली कुंडली में शुक्र और गुरु यदि सप्तम भाव में अच्छे स्थान पर बैठे हैं और उच्च के होकर बैठे हैं तो शादी के बाद व्यक्ति का जीवन अच्छा जाता है
आप यह भी कह सकते हैं कि लग्न कुंडली की पुष्टि करता है नवमांश कुंडली।
निष्कर्ष
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