अक्सर हम भारत के महापुरुषों के बारे में पढ़ते रहते हैं और उनसे कुछ सीखते हैं कि उन्होंने हमारे देश को आजाद करने के लिए कितना कुछ सहन किया ।
और आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे ही महापुरुष श्री देव सुमन जी के बारे में कुछ जानकारियां देने वाले हैं इसलिए हमारी इस आर्टिकल को पूरा जरूर पड़े अधिक से अधिक लोगों को शेयर करें ताकि हर कोई श्री देश में जी के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके
उत्तराखंड का इतिहास क्या है|(What is the history of Uttarakhand)
श्री देव सुमन कौन कौन थे
श्री देव सुमन का जन्म 25 मई 1916 टिहरी गढ़वाल में हीरामन बडोनी के वहां श्री देव सुमन जी का जन्म वह उनकी माता का नाम तारा देवी था
साल 1919 में जब श्री देव सुमन 3 साल की थी तो उनके गांव में हैजा की बीमारी फैल गई
उनके पिताजी ने हैजा की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों की सेवा शुरू करी और उनका इलाज शुरू कर दिया
और उनके पिताजी भी इस बीमारी के चपेट में आ गये
- और 36 साल की कम उम्र में इनके पिताजी का देहांत हो गया
इनकी प्रारंभिक शिक्षा की चम्बाखाल प्राइमरी स्कूल से हुई थी और 1929 में टिहरी मिडिल स्कूल से हिंदी की परीक्षा पास कर दी और आगे की पढ़ाई के लिए यह देहरादून आ गये
इस समय देश में आजादी के लिए आंदोलन चल रहे थे
अक्टूबर 1929 को महात्मा गांधी पहली बार देहरादून आये और उसके बाद देहरादून के लोग भी गांधी जी के साथ आजादी के संघर्ष में जोड़ने लगे और देव सुमन भी जुड़ गये।
6 अप्रैल 1930 में नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा और देश के अन्य हिस्सों में भी नमक सत्याग्रह आंदोलन में जुड़ने लग गये
और देहरादून में भी आंदोलन हुआ और श्री देव सुमन जी भी इस आंदोलन में जुड़ गये और इन्हें जेल हो गयी
साल 1931-32 नेशनल हिंदू स्कूल देहरादून में यह पढ़ने लग गये
उसके बाद दिए लोहार गये और फिर दिल्ली चले गये ।
पंजाब यूनिवर्सिटी से इन्होंने रन भूषण और प्रभाकर परीक्षा को पास किया और हिंदी साहित्य सम्मेलन से विचारण और साहित्य रत्न परीक्षा को पास किया
इसके बाद श्री देव सुमन जी को हिंदी साहित्य सम्मेलन का बहुत अच्छा ज्ञान हो गया था
इसके बाद उन्होंने कुछ अपने दोस्तों के साथ मिलकर देवनगरी महाविद्यालय (दिल्ली) की स्थापना की लेकिन इसके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है
फिर इन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना हाथ लगाया और अपने भाई के अखबार हिंदू फिर उसके बाद धर्मराज अपना सहयोग किया बाद में इलाहाबाद जाकर यह राष्ट्र मत अखबार से भी जुड़े।
और फिर कर्मभूमि अखबार से भी यह जुड़े रहे ।
1937 में इन्होंने सुमन सौरभ नाम की अपनी कविताएं प्रकाशित करायी 32 पेज की यह बुक 17 जून 1937 को प्रकाशित हो गई
सुमन नाम इसलिए चुना गया क्योंकि यह काफी कोमल हृदय भावनात्मक थी इसलिए उन्होंने अपनी बुक का नाम सुमन रखा
इसीलिए पहले यह श्री दत्त सुमन और फिर यह श्री देव सुमन नाम से जान गये
जब यह दिल्ली गए तो यह काफी लोगों से मिले फिर यह वर्धा( महाराष्ट्र) गए और वहां गांधी जी से मिले।
और यह फिर शिमला गए वहां इन्होंने साहित्य स्वागतकर्णी समिति मैं अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया
साल 1938 में इन्होंने राज सही से मुक्ति दिलाने के लिए दिल्ली में गणदेश सेवा समिति शुरू करी और बाद में यह हिमालय सेवा संघ नाम से जाना गया
और साल 1938 में विनय लक्ष्मी सेन की शादी हो गई और यह दो बार विधायक भी चुनी गई थी
जब कांग्रेस का गढ़वाल में एक सम्मेलन हुआ था तो उसमें जवाहरलाल नेहरू जैसे कई नेता आए हुए थे इन्होंने उसमें टिहरी गढ़वाल की समस्याओं को रखा इन्होंने वहां कहा था यदि गंगा हमारी माता होकर भी हमें आपस में मिलने के बजाय इस समय भारतीय है तो हम गंगा को काट देंगे - इसके बाद श्री देव सुमन पूरी तरीके से राजनीति में आ गई उसे समय टिहरी गढ़वाल के राजा नरेंद्र थे यह वही राजा थे जिन्होंने टिहरी गढ़वाल से थोड़ा दूर अपना एक नगर बनाया था जिसका नाम था नरेंद्र नगर।
और यह टहनी नगर की राजधानी थी साल 1925 से लेकर 1929 ताकि यह राजधानी बना रहा ।
नरेंद्र नगर और राजपुर में उत्तराखंड में सबसे ज्यादा होती है औसत वर्षा 318 सेंटीमीटर का अनुमान है नरेंद्र शाह को सबसे क्रूर राजा माना जाता है और इस राजा के खिलाफ आंदोलन कर रही थी जनता
23 जनवरी 1939 को एक मंडल का गठन होता है जिसका नाम था टिहरी राज्य प्रजामंडल ।
और इस मंडल का संयोजक बनाया गया श्री देव सुमन को। - और इसके संयोजक के नाते इन्होंने जो अपने विचार रखें वह अद्भुत थे इन्होंने कहा कि यदि हमें मन ही है तो अपने सिद्धांतों और अपने विश्वासों की सार्वजनिक घोषणा करते हुए मरना श्रेष्ठ है
- 17 -18 फरवरी 1939 पंजाब लुधियाना में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद अधिवेशन हुआ और श्री देव सुमन प्रजामंडल की ओर से यहां गये
और इन्होंने अपने संघ जिसे हिमालय संघ के नाम से और पहले इसे गढ़ संघ जाना जाता था उसके साथ मिलकर हिमालय प्रांतीय देशी राज्य परिषद बनाया और इस परिषद का मतलब था की हिमालय राज्यों में आजादी के लिए जागरूकता लाना
उसके बाद यह बनारस जाकर हिमालय ही राष्ट्रीय शिक्षा परिषद बनाया और वहां से इन्होंने हिमाचल पत्रिका छपा दी।
नरेंद्र शाह को यह सभी चीज पसंद नहीं आ रही थी और उन्होंने एक कानून पास किया सभाबन्दी कानून
आप कोई भी संस्था टिहरी में काम नहीं करेगा 1940 में श्री देव सुमन ने इस कानून को हटाने की बात कही
लेकिन इनकी नहीं सुनी और यह अकेले ही लोगों को जागृत करने निकल गए
और इन्हें चेतावनी दी गई कि आप बिना किसी परमिशन की आप भाषण नहीं दे सकते है
देहरादून में प्रजामंडल का एक अधिवेशन हुआ जो 1941 में हुआ और इन्होंने कहा कि की टिहरी प्रजामंडल की स्थापना होनी चाहिए।
और उसके बाद जब एक अपने घर को आये की 30 अप्रैल 1940 को तो इन्हीं नजर बंद कर दिया गया और उनकी और इनका टिहरी में आना बेन कर दिया लेकिन बाद में इस बैैन को हटा दिया था।
साल 1942 में यह वर्धा चले गए और गांधी जी से प्रजामंडल के प्रचार के लिए परामर्श लेने के लिए गये अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया और यह भी उस आंदोलन में भाग लिया लेकिन देवप्रयाग में इन्हें गिरफ्तार कर दिया गया पहले में हैं 10 दिन ऋषिकेश में और फिर इन्हें देहरादून में और फिर इन्हें आगरा जेल में बंद रखा गया
बाद में जवाहरलाल नेहरू ने टिहरी रियासत के बारे में कहा कि इन काम से टिहरी रियासत के कैद खाने दूरियां भर में मशहूर होंगे लेकिन रियासत की इज्जत नहीं बढ़ेगी
15 महीना के बाद इन्हें छोड़ गया और इनका टिहरी में आना बन कर दिया गया और जेल से छूटने के बाद तुरंत यह टिहरी प्रशासन के आंदोलन करने लग गये
इन्होंने कहा मैं अपने शरीर के कण-कण को नष्ट हो जाने दूंगा लेकिन टिहरी अधिकारों को कुचलने नहीं दूंगा ।
27 दिसंबर 1943 को इन्होंने जैसे ही टिहरी रियासत में प्रवेश कर चंम्बाखाल में नहीं गिरफ्तार कर दिया गया और इन्हीं 30 दिसंबर 1943 को टिहरी जेल में बंद कर दिया और इन पर बहुत अत्याचार किया गया और इसे माफी मांगने को भी कहा लेकिन इन्होंने माफी नहीं मांगी जिन्होंने कहा कि तुम मुझे तोड़ सकते हो लेकिन मोड नहीं सकते हो
और इन पर देशद्रोह का आंदोलन चलने लग गया 21 फरवरी 1944 को इन पर कार्रवाई होने लग गयी और किसी भी सरकारी वकील को नहीं रखने दिया
इन्होंने एक बात कही मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मैं जहां अपने भारत देश के लिए पूर्ण स्वाधीनता के ध्येय मैं विश्वास करता हूं वही टिहरी राज्य में मेरा और प्रजामंडल का उद्देश्य विद्या और शांतिपुरी उपाय से महाराज की छत्रछाया में उत्तरदाई शासन प्राप्त करना और सेवा के साधनों द्वारा राज्य की सामाजिक आर्थिक तथा सब प्रकार की उन्नति करना करना है हां मैं राजा की भावनाओं की विरुद्ध काले कानून और कार्यों की आवश्यक आलोचना की है
और मैं इसे जनता का अधिकार समझता हूं लेकिन इनकी नहीं सुनी गई इनको 2 साल जेल और ₹200 जुर्माना लगा दिया गया
और उन्होंने कहा सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर विश्वास होने के कारण में किसी के प्रति घृणा द्वेष या विरोध का भाव नहीं रखता
कहीं-कहीं लिखा है कि 21 फरवरी 1944 को उन पर राजदोह का केस हुआ और कहीं कहीं पर लिखा है 31 जनवरी 1944 को उन राजदोह का केस हुआ लेकिन 21 फरवरी वाली तारीख सही लगती है क्योंकि 21 फरवरी के बाद इन पर इन पर अत्याचार होने लग गया और उन्होंने अपना पहला अनशनजेल में 29 फरवरी 1944 को किया - चार दिनों के अनशन के बाद पुलिस ने राजा आश्वासन दिया कि प्रजामंडल के बारे में और राजा से बात करेंगे
और इन्होंने अपनी तीन बातें रखी - प्रजामंडल को वैधानिक संगठन माना जाए
जेल से पत्राचार की आजादी हो
झूठे मुकदमे की सुनाई खुद महाराज करें
और इन्होंने कहा यह मांगे पूरी नहीं होती है तो मैं आमरण अनशन करूंगा और 3 मई 1944 को इन्होंने आमरण अनशन शुरू कर दिया और इनका अनशन तोड़ने के की गई
और ऐसा झूठ फैलाया गया की 3 मई 1944 को उन्होंने अपना अनशन तोड़ दिया है और 4 मई1944 को इनको छोड़ दिया जाएगा
इसे जनता शांत हो गई और यही प्रस्ताव उन्होंने सिर्फ देव सुमन के सामने भी कहा कि आपको 2 साल की कैद नहीं काटनी पड़ेगी बल्कि चार तारीख को आपको रिहाई मिल जाएगी
लगातार उनकी तबीयत खराब होने लग गई कहां चला था कि इनको निमोनिया हो गया था निमोनिया इनको हुआ था और इन्हें गलत दवाई दी जाने लगी और 20 जुलाई 1944 लगातार खराब होने लग गई 25 जुलाई 1944 को सिद्धेश सुमन अपने सिद्धांतों अपने लोगों और अपने देश के लिए लड़ते-लड़ते शहीद हो गए
3 में 1944 से 25 जुलाई 1944 तक 84 दिन का अनशन श्री देव सुमन ने किया |
निष्कर्ष
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